पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/९२

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६७ पहिला हिस्सा चुकी मगर में अपनी तरफ से यह पूछतो हू कि तुम के दिन तक इस तरह से गुजारा कर सकोगे ? (कुछ सोच कर) नही, मेरा यह सवाल करना ही वृया है क्योकि मै खूब जानती हूं कि दो तीन दिन के अन्दर ही तुम्हारा फैसला हो जायगा और तुम इस दुनिया से उठा दिये जानोगे । भूत० । अगर ऐसा ही है तो यह दो तीन दिन का विलम्ब भी क्यो ? औरत० । इसलिये कि तुम्हारी सजा का ढंग निश्चय कर लिया जाय । भूत० । ढंग कसा ? मै नही समझा औरत 10 } मतलव यह कि तुम एक दम से नहीं मार डाले जानोगे बल्लिा तरह तरह की तकलीफ देकर तुम्हारी जान लो जायगी, प्रस्तु यह निश्चय किया जा रहा है किस तरह की तकलीफ तुम्हारे लिए उचित है । भूत० । ये वातें कोन तजवीज कर रहा है ? औरत० । हमारे मालिक लोग। भूत० । मालूम होता है कि तुम्हारे मालिक लोग मर्द नहीं हैं हीजड़े है या औरत । ऐसे विचार मदों के नहीं होते ! औरतः । वेशक ऐसा ही है, हमारे मालिक औरत है । भूत० । (पाश्चर्य से) औरत हैं !! प्रौरत० । हाँ पोरत। भूत० । मगर मैने कितो औरत के साथ कभी दुश्मनी नहीं की बल्कि कोई मर्द भी ऐसा न मिलेगा जो मुझे अपना दुश्मन बतावे और कहे कि गदापरसिंह ने मुझे वर्वाद कर दिया। औरत० । जो हो, इस विषय में मैं नहीं कह सकती प्रापिर कोई वात हो होगी तो॥ भूत० ! क्या तुम बता सक्ती हो कि तुम्हारी मालकिन का नाम क्या है अपया यह कौन है ? तुम यकीन रखो कि इसके बदले में मैं तुम्हें इतनी दोलत दूंगा कि कभी तुमने प्रांत्र मे न देखी होगी। पौरतः। मैं ऐसा नहीं कर सकती कि तुम्हें इस कंद से छुडा दूं .