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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/९५

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भूतनाथ १०० औरत० । तुम यकीन जानो कि मै एक अमीर की लोडी हू मेरी मालकिन वेभन्दाज दौलत लुटाने वाली है, और उसकी बदौलत मुझे किसी वात की पर्वाह नहीं है भूत० । (वात काट कर) मगर लोडीपन का तौक गले मे जरूर पडा हुमा है, स्वतत्र नही लापर्वाद और वेफिक्र नहीं ! औरत० । हा, यह सच है मगर उनकी नौकरी मुझे गढाती नहीं और न मुझसे बहिनापे का सा बर्ताव करती है, मगर फिर भी अगर तुम खुशी से दोगे तो मै उस दौलत को जरूर ले लूगी लेकिन सिर्फ ऐसी अवस्था में जव कि मुझ पर नमकहरामी का धब्बा न लग सके । ग्रन्यकर्ता० । सत्यवचन ! नमकहराम ! भला ऐसी भी कोई बात है !! भूत० । नहीं नही, तुम पर नमकहरामी का धब्बा नही लग सकेगा और तुम्हारी मालकिन का भी कुछ नुकसान नही होगा क्योकि मैं इस कैद- खाने से छूट कर भाग नही जाना चाहता, केवल इतना ही जानना चाहता कि मै किसका कैदी हू और अपना वटुमा केवल इतने ही के लिए मागता है कि उस खजाने को ताली निकाल कर तुम्हे दे दू और बता दू कि वह खजाना कहा है। औरत० । प्रच्छा पहिले मै वटुमा लाकर तुम्हें दे दू तव पीछे वता दूगी कि तुम किसके कैदी हो, सब करो और दिन बीत जाने दो, देखो वह दूमरी लौडी भाती है, अब मै विदा होती है । इतना कह कर वह लौडी भूतनाथ के दिल में खुशी और उम्मीद का पौवा जमा कर चली गई। भूतनाथ वडा हो कट्टर और दुख सुख वर्दाश्त करने वाला ऐयार था। कठिन से कठिन समय प्रा पड़ने पर भी उसकी हिम्मत टूटती न थी और वह अपनी कार्रवाई से बाज नहीं पाता था। गाने पीने का सामान जो कुछ उसके सामने प्रामया था उसमें से पानी के सिवाय वाकी सब कुछ ज्यो का त्यो पड़ा रह गया। भूतनाथ को सिर्फ