पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/९९

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भूतनाथ १०४ 1 भूतनाथ ने पुन् यों जवाब दिया भूत० । वदनामी से तो तुम किसी तरह नही बच सकती हो । अगर में यह बटुआ तुम्हें वापस न दू तो तुम क्या करोगी? लौंडी० । मै खूब चिल्लाऊ गी कि किसी लौंडी ने यह बटुआ ला कर भूतनाथ को दे दिया है। भूत० । लेकिन लोगो के इकट्ठा हो जाने पर मै यहो कह दूगा कि इसी लौंडी ने ला दिया है। लौंडी० '० । अगर इस बात का किसी को विश्वास न होगा। भूत० । (हस कर) मालम होता है कि तुम विश्वासपात्र समझी जाती हो । खैर तुम नहीं तो कोई दूसरी तुम्हारी साथिन पकडी जायगी। लौंडी० । जो होगा देखा जायगा । भूत० । मगर नही मैं ऐसा वेईमान नही हू , लो यह वटुमा देता हूं जहा से तुम लाई हो रख पायो । क्या कहू , मुझे तुम्हारी बातो पर विश्वास ही नहीं होता नही तो मै वह खजाना जरूर तुम्हें दे देता। इतना कह कर भूतनाथ ने वह वटुया लौंडी की तरफ वढाया। उसने जिस तरह दिया था उसी तरह ले लिया और यह कहती हुई वहा से चली गई, "बुरे लोगो से बातचीत करना भो बुरा ही है, इस काम के लिए मुझे जिन्दगी भर पछताना पडेगा।" जब वह लौंडी कुछ दूर चली गई भूतनाय ने धीरे से यह जवाब दिया जिसे वह खुद ही सुन सक्ता था-"तुम्हारे लिए चाहे जो हो मगर मेरा काम निकल ही गया । अव मै इस पेंचोले मामले की गुत्थी अच्छी तरह सुलझा लगा।" बात करते करते उस बटुए में से जो कई चीजें निकाल ली थी उनमें शीशिया भी थी जिसमे किसी तरह का अर्क था । एक शीशी का पर्व विनी टग से मृतनाय ने कंदखाने के कई सीखचों की जड aaमरीशी का भी उसी जगह पर भूतनाथ