पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०६

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[ १५ ] नेक हू न मनके । भूपन भनत भौंसिला के आय आगे ठाढ़े वाजे भए उमराय तुजुक करन के ॥ साहि रह्यो जकि, सिव साहि रह्यो तकि, और चाहि रह्यो चकि, वने व्योंत अनवन के। ग्रीपम के भानु सो खुमान को प्रताप देखि तारे सम तारे गए ___दि तुरकन के ॥ ३८॥ । अनन्वय लक्षण-दोहा जहाँ करत उपमेय को उपमेयै उपमान । तहाँ अनन्वै कहत हैं भूषन सकल सुजान ॥ ३९ ॥ उदाहरण-मालती सवैया साहि तनै सरजा तव द्वार प्रतिच्छन दान कि दुंदुभि वाजै । भूषन भिच्छुक भीरन को अति भोजहु ते बढ़ि मौजति साजै। राजन को गन, राजन ! को गनै ? साहिन मैं न इती छवि छाजै । आजु गरीवनेवाज मही पर तो सो तुही सिवराज बिराजै ।। ४० ॥ प्रथम प्रतीप लक्षण-दोहा . जहँ प्रसिद्ध उपमान को करि बरनत उपमेय।। तहँ प्रतीप उपमा कहत भूपन कविता प्रेय ।। ४१॥ ' चाप न की, हिले तक नहीं । २'अदव ।