पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०९

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[ १८ ] उदाहरण-कवित्त मनहरण तो सम हो सेस सो तो बसत पताल लोक ऐरावत गज सो तो इंद्र लोक सुनिये । दुरे हंस मानसर ताहि में कैलास धर सुधा सुरवर सोऊ छोड़ि गयो दुनियै ॥ सूर दानी सिरताज महाराज सिवराज रावरे सुजस सम आजु काहि गुनिये ? भूपन जहाँ लौं गनौं तहाँ लौं भटकि हाखों लखिये कळू न केती बातें चित चुनियै ।। ५०॥ अपरंच-मालती सवैया कुंद कहा पय वृंद कहा अरु चंद कहा सरजा जस आगे ? । भूपन भानु कृसानु कहात्रे खुमान प्रताप महीतल पागे ? | राम. कहा द्विजराम कहा बलराम कहा रन में अनुरागे ? । वाज कहा मृगराज कहा अति साहस मैं सिवराज के आगे ?॥५१॥ यो सिवराज को राज अडोल कियो सिव जो कहा धुर्व » है ? । कामना दानि खुमान लखे न कळू सुर-रूख न देव-गऊ है ? भूषन भूपन में कुल भूपन भौसिला भूप धरे सब भू है । मेरु कछू न कछू दिगदंति न कुंडलि कोल कछू न कछु है ।। ५२ ॥ १ कहा अब । २ जो अत्र । ३ निश्चय करके। ४६व नक्षत्र। ५ सर्प; यहाँ शेष जी।