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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०८

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[ १७ ] तृतिय प्रतीप वखानहीं तहँ कविकुलसिरमोर ॥ ४५ ॥ उदाहरण-दोहा गरव करत कत चाँदनी हीरक छीर समान । फैली इती समाज गत कीरति सिवा खुमान ।। ४६ ।। चतुर्थ प्रतीप लक्षण-दोहा पाय वरन उपमेय को, जहाँ न आदर और । कहत चतुर्थ प्रतीप हैं, भूपन कबि सिरमौर ।। ४७ ॥ उदाहरण-कवित्त मनहरण चंदन मैं नाग, मद भयो इंद्र नाग, बिष भरो सेसनाग कहै उपमा. अवस को ? भोर ठहरात न कपूर बहरात, मेघ सरद उड़ात बात लागे दिसि दस को ॥ शंभु नील ग्रीव, भौंर पुंडरीक ही बसत, सरजा सिवा जी सन भूषन सरस को ? छीरधि मैं पंक, कलानिधि मैं कलंक, याते रूप एक टंक ए लहैं न तव जस को ॥४८॥ पंचम प्रतीप लक्षण-दोहा हीन होय उपमेय सों नष्ट होत उपमान । पंचम कहत प्रतीप तेहि भूपन सुकवि सुजान ॥ ४९ ।। . .