पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१११

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[ २० ] वाह पर राम द्विजराज है । दावा दुम दंड पर चीता मृगझुण्ड पर भूपन वितुंड पर जैसे मृगराज है । तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर त्यों मलिच्छ बंस पर सेर सिवराज है ॥ ५६ ।। ललितोपमा लक्षण-दोहा जहँ समता को दुहुन की लीलादिक पद होत । ताहि कहत ललितोपमा सकल कविन के गोत ।। ५७ ।। विहसत, निदरत, हँसत जहँ छवि अनुसरत वखानि । सत्रु मित्र इमि औरऊ लीलादिक पद जानि ।। ५८ ।। उदाहरण-कवित्त मनहरन साहि तनै सरजा सिवा की सभा जामधि है मेरुवारी सुर की सभा को निदरति है । भूपन भनत जाके एक एक सिखर ते केते धौं नदी नद की रेल' उत्तरति है। जोन्ह को हँसति जोति हीरा मनि मंदिरन कंदरन में छवि कुहूं कि उछरति है। ऐसो ऊँचो दुरग महावली को जामै नखतावली सों वहस दिपावली धरति है ॥ ५९॥ १रेला, वड़ा वहाव। २ अमावस्या की ( अर्थात् कंदरों से अमावस्या को छवि उछल जाती है या आगे निकलती है, अर्थात् उनका अँधेरा दूर हो जाता है )। ३ वड़ा वलवान अर्थात् शिवराज।