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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/११२

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[ २१ ] रूपक - लक्षण-दोहा जहाँ दुहुन को भेद नहिं वरनत सुकवि सुजान । रूपक भूपन ताहि को भूषन करत बखाने ।। ६०॥ उदाहरण-छप्पय ( समाभेद रूपक) । कलिजुग जलधि अपार उद्धसधरम्म उम्मि मय । लच्छनि लच्छ मलिच्छ कच्छ अरु मच्छ मगर चय ॥ नृपति नदीनद वृंद होत जाको मिलि नीरस । भनि भूषन सब भुस्नि घेरि किन्निय सुअप्प बस ॥ हिंदुवान पुन्य गाहक बनिक तासु निवा- हक साहि सुच । बर वादवान किरवान धरि जंस जहाज - सिवराज तुव ॥ ६१ ॥ . साहिन मन समरत्थ जासु नवरंग साहि सिरु । हृदय जासु अब्बास साहि' बहुवल बिलास थिरु ॥ एदिल साहि १ भूपणजी ने रूपक का वही लक्षण दिया है जो अन्य कवियों ने "अभेद रूपक" का । जहाँ उपमान से अभेदता या तद्रूपता देने के लिये उपमेय का रूप रचा जावे, वहाँ रूपक होता है। २ ऊर्मि, लहर । ३ सुत। - ४ औरंगजेब, दिल्ली का नुप्रसिद्ध बादशाह । ५ यह उस समय फारस का बादशाह था। इसीसे इसको "हृदय" कहा गया है। इसका शाहजहाँ और औरंगजेब से मेल और लिखा पढ़ी थी। ६ आदिलशाह बोनापुर के बादशाहों की पदवी थी। इनके यहाँ शिवाजी के पिता साहजी भौंसिला नौकर थे; पर शिवाजी ने युद्ध ठान दिया और इन्हें खूब हो छकाया ।