के लटके, नायिकाओं के नखशिख और विशेष करके कटि, नेत्र च नितंबों के वर्णन, उलाहने, गणिकाओं का अधिक धन वसूल करने का प्रयत्न इत्यादि इत्यादि, विशेषतः यही सब हमारी कविता हमको दिखा रही है ! हमारे इस प्रबंध के नायक भूषण महाराज ऐसे ही समय में उत्पन्न हुए थे, पर इन्हें ऐसे वर्णन पसंद न थे, अतः ये लिखते हैं- ब्रह्म के आनन ते निकसे ते अत्यंत पुनीत तिहूँ पुर मानी । · राम युधिष्ठिर के बरने बलमीकि हु व्यास के संग सोहानी ॥ भूषन यो कलि के कविराजन राजन के गुन पाय नसानी । पुन्य चरित्र सिवा सरजा-सर न्हाय पवित्र भई पुनि वानी ।। हमारे भूषण महाराज का यह भी एक बड़ा गुण है कि श्रृंगार को ही नहीं वरन् सभी अनुपयोगी विषयों को लात मारकर इन्होंने भारतमुखोज्वलकारी महाराज शिवाजी भोंसला एवं छत्रसाल बुंदेला जैसे महापुरुषों के गुणगान में अपनी अलौकिक कवित्व शक्ति लगाई और ऐसे उपयोगी वर्णनों की ओर लोगों की रुचि आकर्षित की, यहाँ तक कि उन्होंने सिवा कतिपय छंदों के श्रृंगार रस के वर्णन में और कुछ न कहा। एक शृंगार छंद में भी मानों प्रायश्चित्तार्थ, उन्होंने युद्ध का ही रूपक बाँधा है (स्फुट कविता देखिये )। - हर्ष की बात है कि जैसे उन्होंने श्रृंगार एवं अन्य अनुपयोगी विपयों को लात मारकर वीर-रौद्र तथा भयानक रसों ही को प्रधा- नता देकर अन्य कवियों को सदुपदेश सा दिया, वैसे ही इनका
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