पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३

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[ ४] मान भी ऐसा हुआ, जैसा इनसे श्रेष्टतर कवियों का भी कभी स्वप्न तक में न हुआ, जैसा कि दासजी के शिरोभाग में उद्धृत छंद से प्रकट होता है। बिहारीलालजी सदैव कलियुग के दानियों की निंदा ही करते रहे ( "तुम हूँ कान्ह मनो भए आजु काल्हि के दानि")। परंतु उन्होंने यह न विचार किया कि उन्हींके सम. कालीन भूपण कवि किस प्रकार की कविता करने से किस स्थान को पहुँच गए है । अस्तु । ___शिवसिंह-सरोज तथा अन्य पुस्तकों में इन महाशय के वनाए चार ग्रंथ लिखे हैं-(१) शिवराज भूपण, (२) भूपण- हजारा, (३) भूषण उल्लास, और (४) दूपण उल्लास । इनमें अंतिम तीन ग्रंथों को अद्यावधि मुद्रण का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है, और न हमने उन्हें कहीं देखा ही है । नहीं मालूम उनके रच- यिता भूषण जी हैं या नहीं। एक यह भी प्रश्न है कि शिवाबावनी एवं छत्रसालदशक कोई स्वतंत्र ग्रंथ हैं अथवा भूपण की स्फुट कविता के संग्रह मात्र । प्रथम प्रश्न के उठने का यह कारण है कि किसी महाशय ने भूषणजी के उक्त चार ग्रंथ होने का कोई प्रमाण नहीं दिया है। उन्होंने केवल यही कह दिया है कि भूषण के ये चार ग्रंथ हैं। यदि वे लिखते कि उन्होंने इन चारों ग्रन्थों को देखा है अथवा उनका होना किसी स्थान विशेष पर किसी प्रामाणिक रीति पर सुना है, तो उनका कथन अधिक मान्य होता । हमारा इस विषय में यह मत है कि यद्यपि हम नहीं कह सकते कि भूषण महाराज के कौन कौन और ग्रंथ हैं ("हजारा"