यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ३१ ] .. उदाहरण-दोहा काल करत कलिकाल मैं नहिँ तुरकन को काल । काल करत तुरकान को सिव सरजा करवाल ॥८६॥ पुनरपि-कवित्त मनहरण .. तेरे ही भुजान पर भूतल को भार कहिवे को सेसनाग दिगनाग हिमाचल है । तेरो अवतार जग पोसन भरनहार कछु करतार को न तामधि अमल है ।। साहिन में सरजा समत्थ सिवराज कवि भूषन कहत जीबो तेरोई सफल है। तेरो करवाल करै म्लेच्छन को काल बिनु काज होत काल बदनाम धरातल है ।। ८७ ॥ भ्रांत अपन्हुति = भ्रांतापन्हुति लक्षण-दोहा संक आन को होत ही जहँ भ्रम कीजै दूरि । भ्रांतापन्हुति कहत हैं तहँ भूषन कवि भूरि ।।८८।। उदाहरण-कवित्त मनहरण साहितनै सरजा के भय सों भगाने भूप मेरु मैं लुकाने ते लहत जाय वोत हैं। भूपन तहाऊँ मरहटपति के प्रताप पावत न कल अति कौतुक उदोत हैं ।। "सिव आयो सिव आयो" संकर के आगमन सुनि कै परान ज्यों लगत अरि गोत हैं। १ ओक, घर। २ गोन।