पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१२१

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हेतु अपन्हुति = हेत्वपन्हुति लक्षण-डोहा नहाँ जुति मा आन को कहिए आन उपाय । हेतु अपन्हुति कहत हैं ताकह कवि-समुदाय ||८|| ___ उदाहरण-दोहा सिव सरजा के कर ललै सो न होय किरवान । मुन भुजगेन भुजंगिनी मखति पौन अरि पान ||८|| पुनरपि-कवित्त मनहरण भाखत सकल सिब जी को करवाल पर भूपन कहत यह करि के विचार को । लीन्हो अवतार करतार के कहे ते कलि न्लेच्छन हरन उद्धरन भुव मार को || चंडी लै घुमंडि अरि चंड मुंड चावि करि पीवत नविर का लावत न बार को। निज भरतार भूत भावन की भूख मेटि भूषित करत भूतनाथ मातार को 11 ८2 | पर्यस्त अपन्हुति = पर्यस्तापन्हुति लक्षण-दोहा वन्तु गोय ताको धरम आन वस्तु में रोपि । पर्यन्तापन्हुति कहत ऋत्रि भूषन मति बोधि ।। ८५ ।। कारण कहकर। बन्य गवायं बनने कारण का कयन प्रस्ट रूप दे करदे हैं, जिन्तु मृपन ने दोनों उदाहरणों में काम को प्रश्न करले ब्य मात्र रखा है। २३ अलंकार में विवाय लमग में दी हुई वानों यह भी आवश्यक है कि एक पद दोहरा कर यो । कवे के उदाहरण में यह बाद विद्यमान है; पर लशन ने छूट रही है। उनमें निजी वस्तु का धर्म निषित हो कर अन्य वस्तु में वर्णित होता है और प्रायः कुछ पद दोहग करना है।