पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१२४

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.. [ ३३ ] कैतव अपन्हुति = कैतवापन्हुति लक्षण-दोहा जहँ कैतव', छल, व्याज मिसि इन सों होत दुराव । कैतवपन्हुति ताहि सों भूपन कहि सतिभाव ॥ ९५ ।। ___उदाहरण-कवित्त दंडक (मनहरण) साहिन के सिच्छक सिपाहिन के पातसाह संगर मैं सिंह कैसे जिनके सुभाव हैं । भूषन भनत सिव सरजा की धाक ते वै काँपत रहत चित गहत न चाव हैं ॥ अफजल की अगति सासता की अपगति बहलोले विपति सों डरे उमराव हैं। पक्का मतो १ धोखा। २ भयानक रसपूर्ण । कवि गोविंद गिल्ला भाई जी की हस्तलिखित प्रति में यह छंद पर्यायोक्ति के उदाहरण में दिया गया है, पर अन्य सभी प्रतियों में कैतवा- पन्हुति हो के उदाहरण में पाया जाता है। . . ३ वहलोल खाँ सन् १६३० ई० में निपामशाही वादशाह के यहाँ था और शाहजहाँ बादशाह की सेना से न दवा सकी । सन् १६६१ में इसने वीजापुर सर- कार की सेवा ग्रहण कर ली और शिवाजी से युद्ध करने को यह भेजा गया। इस बीच में सिदो जोहर नामक सेनापति बीजापुर सरकार से बिगड़ खड़ा हुआ और बहलोल मे ( जिसका पूरा नाम अब्दुल करीम बहलोल खाँ था ) उसे परास्त किया। मार्च सन् १६७३ में इसे खवास खाँ वजीर ने शिवाजी से लड़ने को भेजा। पहले इसने पनाले पर मरहठों को मुगलों को सहायता से हराया; किन्तु पीछे से उसी युद्ध में स्वयं शिवाजो ने आकर इसे हराकर पनाला छीन लिया। थोड़े ही दिनों में पनाला वापस लेने को यह फिर मरहठों से लड़ने गया; परंतु मरहठों ने इसे घेर कर खूब दी