पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१२५

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करिकै मलिच्छ मनसब छोड़ि मक्का ही के मिसि उतरत दरियाव हैं ।। ९६॥ साहि तनै सरजा खुमान सलहेरि' पास कीन्हों कुरुखेत तंग किया और दड़ो कठिनाई से इसका पिंड छोड़ा ( उन्होंने इसे वास्तव में बंदी नहीं दना पाया जैसा कि छंद नं० ३५ में लिखा है)। फरवरी, मार्च सन् १६७४ में इसे शिवाजी के सेनापति हंसानी मोहिते ने जेतारी पर हराया। सन् १६७५ में वहलोळ के इशारे से खवास खौँ मार डाला गया और उसके ठौर वहलोल बोनापुर के नाबालिग वादशाह का वली ( Regent ) बनाया गया। इसने खानजहाँ बहादुर को परास्त कर मुगलों से मेल किया । सन् १६७७ में शिवाजी ने कुतुबशाह से मेल किया जिसमें एक शर्त यह भी थी कि वहलोल वीजापुर के राज्याधिकार से हटा दिया जाय । इस पर दहलोल मुगल सरदार खानजहाँ दहादुर को साथ ले कुतुदशाह पर चढ़ घाया, पर उने मदन पंत ने, जो कुतुबशाह का वजीर था, घोर युद करके परास्त किया। छंद. नं० १६१ और २१९ देखिये। सन् १६७७ में यह मरा भी। १ शिवानी मक्का जानेवाले तैयदों को प्रायः नहीं सताते थे। २ सलहेरि के किले को शिवानी के प्रधान मंत्री मोरोपंत ने १६७१ ई० में जीत' लिया था। तभी से इस पर शिवानी का अधिकार हुआ। दूसरे ही साल १६७२ ई०. में दिल्ली के सेनापति दिलेरखाँ (जिसे लोग दलेल खाँ भी कहते हैं ) और खाँ नहाँव. हादुर ने इसे घेरा और शिवाजी ने मोरोपंत और प्रतापराव गुजर के आधिपत्य में एक महती सेना उनसे लड़ने को मेजी । ये सेनापति स्वयं तो न लड़े पर इन्होंने इखलास खाँ को एक बहुत बड़ी सेना सहित लड़ने को भेजा। इस दड़े हो विकट संग्राम में मुगलों को बड़ी हानि पहुँचो और उनके मुख्य सेनानायकों में से २२ मारे गए और मनेक वंदी हुए एवं समस्त सेना एकदम तितर वितर हो गई। तभी तो भूषण जी ने इसका ऐसा भयंकर वर्णन मी किया हैं (छंद नं० २२६,२९२, ३३१, ३५५ एवं शिवावावनी के नं० २५ व २६)।