पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ ३७ ] उदैभानौ ॥ भूपन यो घमसान भो भूतल घेरत लोथिन मानो मसानौ । ऊँचे सुछज्ज छटा उचंटी प्रगटी परभा परभात की मानौ ॥ १० ॥ . . पुनरपि-कवित्त मनहरण . . . दुरजनदार भजि भजि वेसम्हार चढ़ी उत्तर पहार' डरि .. सिवजी नरिंद ते । भूषन भनत बिन भूषन वसन, साधे भूखन पियासन हैं नाहन को निंदते॥ बालक अयाने वाट बीचही विलाने कुम्हिलाने मुख कोमल अमल अरविंद ते । गजलें कजल कलित बढ़यो कढ़यो मानो दूजा सोत तरनितनूजा को कलिंद ते॥१०१।। ___ अनुक्तविषयावस्तूप्रेक्षा-यथा दोहा महाराज सिवराज तवं सुघर धवल धुव कित्ति । ... छबि छटान सों छुवति सी छिति अंगन दिग भित्ति ।।१०२।। किला मरहठों के हाथ लगा। तब शिवाजी ने यह समाचार सुना, तब उन्होंने बड़े शोक में आकर कहा कि "गढ़ तो मिला पर हाय ! सिंह (ताना जी ) जाता रहा।" यह किला तब से सदा शिवाजी के पास रहा। ) उदयभानु किलेदार जिसका हाल पिछले पृष्ठ के नोट में लिखा गया है। २ इस युद्ध में तानाजी मलूसरे किले के छज्जों से आँगन में ससैन्य कूदा था। ३ हिमाचल। .. ४ भयानकरसपूर्ण । उस समय की कठोरता को देखिए कि कोमलचित्त ब्राह्मण होकर भी भूषण जी को बेचारे वालकों पर भी दया न आई और उनकी महा दुर्गति का आप कैसे आनन्दपूर्वक वर्णन कर रहे हैं। ५ वह पहाड़ जिससे यमुनाजो निकली हैं। इसीसे उनका नाम कालिंदी है। . * मनुक्तविषया में उत्प्रेक्षा का विषय अकथित रहता है। यहाँ मुख्यता कीर्तिवाली