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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३०

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[ ३९ ] मानो हय हाथी उमराव करि साथी अवरंग डरि सिवाजी पै भेजत रिसाल है ।। १०३ ॥ • सिद्धविषयाफलोत्प्रेक्षा-मनहरण दंडक जाहि पास जात सो तौ राखि ना सकत याते तेरे पास अचल सुप्रीति नाधियतु है। भूपन भनत सिवराज तव कित्ति सम और की न कित्ति कहिवे को काँधियतु है ।। इंद्र कौ अनुज तैं उपेंद्र अवतार याते तेरो बाहुबल लै सलाह साधियतु है। पाय तर आय नित निडर बसायवे को कोट बाँधियतु मानो 'पाग बाधियतु है ॥ १०४॥ दोहा दुवन सदन सब के बदन सिव सिव आठौ याम । निज बचिवे को जपत जनु तुरकौ हर को नाम ॥१०५।। गमगुसोत्प्रेक्षा (गम्योस्प्रेक्षा) लक्षण-दोहा। मानो इत्यादिक बचन आवत नहिं जेहि ठौर । उत्प्रेक्षा गम गुप्त सो भूपण कहत अमौर ॥१०६।। १ साल, खिराज, या जो किसी के पास भेजा जावे।

  • फलोत्प्रेक्षा में सफल फल कहा जाता है, जो सिद्ध विषया में सम्भव और असिद्ध

'विषया में असम्भव होता है। कवि ने असिद्ध विपया नहीं कही है।