पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३१

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[ ४० ] उदाहरण-मनहरण देखत ऊँचाई उदरतं पाग, सूधी राह चोस हूँ मैं चढ़े ते जे साहस निकेत हैं। सिवाजी हुकुम तेरो पाय पैदलन सलहेरि परनालो ते वै जीते नहुँ खेत हैं । सावन भादों की भारी कुहू की अँध्यारी चढ़ि दुग पर जात मावलीदल सचेत हैं । भूपर्ने भनत ताकी बात में विचारी तेरे परताप रवि की उज्यारी गढ़ लेत हैं ॥१०॥ पुनः दोहा और गढ़ोई नदी नद सिव गढ़पाल दुखाय । दौरि दौरि चहुँओर ते मिलत आनि यहि भाव ॥१०॥ १ गिरती है, उतरती हैं। २ यह जिला १६५९ के मंत्र में शिवानी के अधिकार में लाया। दोनापुर को ओर से जिद्दो नौहर ने इसे मई १६६० में फिर छोन लेने के विचार से देरा, पर वह सफल मनोरथ, न हुआ। तव स्वयं दीजापुराधीश ने १६६ में इसे कर बोन लिया; परंतु शिवानी ने इसे मार्च १६७३ ई० में फिर से छनकर अपने अधिकार में कर लिया। सन १६७६ में एक वार शिवाजी ने इसे फिर खोया और बीता। ३ नै साफ मैदान हो, ात् इतने ऊँचे किलों पर पैदल गण में पड़ गए लेने कोई समयल भूमि पर दौड़े। ४ पहाड़ी देश के रहनेवाले शिवाजी के पैदल सिपाही। ५ इस छंद में गन्योत्प्रेक्षा लंकार बहुत साफ नहीं है, किन्तु निक माना है। ६ समुद्र।