पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४२

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[ ५१ ] उदाहरण-दोहा सिव ! औरंगहि जिति सकै और न राजा राव । हत्थिमत्थ पर सिंह बिनु आनन घालै धाव ।। १३८ । चाहत निरगुन सगुन को ज्ञानवंत गुनधीर । सकल भाँति निरगुन गुनिहि सिवा नेवाजत वीर ॥१३९।। पुनः-मालती सवैया देत तुरी गन गीत सुने बिनु देत करी गन गीत सुनाए । भूपन भावत भूप न आन जहान खुमान कि कीरति गाए । मंगन को भुवपाल घने पै निहाल करै सिवराज रिझाए । आन ऋतै वरसैं सरसैं उमड़ें नदियाँ ऋतु पावस पाए' ॥ १४० ॥ निदर्शना लक्षण-दोहा सदृश वाक्य जुग अरथ को करिए एक अरोप । भूपन ताहि निदर्शना कहत बुद्धि दै ओप ।। १४१ ॥ ___उदाहरण-मालती सवैया मच्छहु कच्छ मैं कोल नृसिंह मैं बावन मैं भनि भूपन जो है। भाव रहता है; परन्तु पहले में धर्म का वस्तु प्रतिवस्तु भाव ( एक धर्म का जुदे शब्दों में दो जगए हाना ) होता है तथा दृष्टान्त में धर्म का विंव प्रतिक्वि भाव होते हुए भी दोनों धर्म पृथक हैं । दृष्टान्त में वाक्य के दोनों भागों में उपमेय उपमान का सम्बन्ध रहता है, विवप्रतिबिंव रूप धर्म और वाक्य दोनों में आते हैं, तथा वाचक लुप्त रहता है। १ इस छंद से विदित होता है कि भूपणजी ने शिवराज से बहुत कुछ दान पाया था। २ निदर्शना चार प्रकार की होती है, किन्तु भूषण ने केवल प्रथम निदर्शना का कथन किया है।