पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४४

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उदाहरण-छप्पय त्रिभुवन मैं परिसिद्ध एक अरि बल वह खंडिय। यहि अनेक अरि बल विहंडि रन मंडल मंडिय ॥ भूषण वह ऋतु एक पुहुमि पानिपहि बढ़ावत । यह छहु ऋतु निसि दिन अपार पानिप सरसावत ॥ सिवराज साहि सुव सत्थ नित हय गय लक्खन संचरइ । यकइ गयंद यकाइ तुरंग किमि सुरपति सरवरि करइ ॥१४७।। पुनरपि-सवित्त मनहरण दारुन दुगुन दुरजोधन ते अवरंग भूपन भनत जग राख्यो छल मढ़ि कै । धरम धरम, बल भीम, पैज अरजुन, नकुल अकिल, सहदेव तेज चढ़ि कै॥ साहि के सिवाजी गाजी, करथो आगरे मैं चंड पांडवनहू ते पुरुषारथ सुबढ़ि कै। सूने लाखभौन ते कढ़े वै पाँच रातिं, तेंजु द्योस लाख चौकी ते अकेलो आयो कढ़ि के ॥१४८।। सहोक्ति लक्षण-दोहा वस्तुन को भासत जहाँ, जन रंजन सह भाव । , दुर्योधन ने छल से पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रबंध किया था। सो धर्मराज के धर्म, भीमसेन के बल, अर्जुन की पैज, नकुल की बुद्धि और सहदेव के तेज से परिवों का उद्धार हुआ । इसी पर उक्ति करके कवि शिवाजी के दिल्ली से निकल माने पर उनकी तुलना पाँचों भाइयों से करता है।