तथा कविवर तुकारामजी का हाल लिखे बिना भूपणजी कैसे रहते ? शंभाजी के प्रधान कृपापात्र कुलूप ॐ नामक एक कान्य- कुब्ज ब्राह्मण थे, जिन्हें औरंगजेब ने पकड़कर मरवा डाला था। भूषण भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। क्या वे कहीं कुलूप का नाम ही न लिखते ? शिवाजी का शील स्वभाव बनाने में उनके पालक दादाजी कोणदेव तथा उनकी माता जीजाबाई का बड़ा प्रभाव पड़ा था । क्या भूपणजी इनका कहीं नाम तक न लेते ? क्या यह संभव है कि भूपणजी ब्राह्मण होकर महात्मा रामदास के एवं कवि होकर मराठी कवियों के शिरोमणि तुकारामजी के विपय में एक दम मौन धारण कर लेते ? भूपणजी, जैसा कि आगे लिखा जायगा, साहूजी के राजत्व काल तक अवश्य जीवित थे; परंतु इनके प्रस्तुत ग्रंथों में साहूजी के विषय में केवल एक छंद मिलता है । इन सव बातों से स्पष्ट विदित होता है कि भूपणजी के कई ग्रंथ देखने का अभी हम लोगों को सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ है। (३) भूषणजी दीर्घजीवी हुए हैं, और प्रायः १०५ वर्ष की अवस्था में उनका देहांत हुआ। पर शिवराजभूपण उन्होंने केवल छः सात साल के भीतर (सन् १६६७ से १६७३ ईसवी तक) बना डाला। उसके ६०-६५ वर्ष पीछे तक वे जीवित रहे । क्या इतने दिनों में उन्होंने दो चार भी अन्य ग्रंथ न लिखे होंगे? यह तो विदित ही है कि अंतिम समय तक वे कविता करते रहे।
- वारतव में इनकी उपाधि कवि कुलेश थी, किन्तु महाराष्ट्र लोग ईर्ष्यावश इनको
कलुष अथवा कुलूप कहते थे।