पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५४

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[ ६३ ] सुर-मंडलै विदारि वेऊ सुरलोक रत हैं। काहे ते सिवाजी गाजी तेरोई सुजसु होत तोसों अरिवर सरिवरि सी करत हैं ।। १७६ ॥ आक्षेप लक्षण-दोहा । पहिले कहिये वात कछु, पुनि ताको प्रतिषेध । ताहि कहत आच्छेप हैं भूषन सुकवि सुमेध ॥१७७।। उदाहरण-मालती सवैया जाय भिरौ न भिरे बचिहौ भनि भूषन भौंसिला भूप सिवा सों। जाय दरीन दुरौ दरिऔ तजिकै दरियाव लँघौ लघुता सों ।। सीछन काज वजीरन को क बोल यों एदिल साहि सभा सों। छूटि गयो तौ गयो परनालो सलाह कि राह गहौ सरजा सों ॥१७८।। द्वितीय लक्षण-दोहा जेहि निषेध अभ्यास ही भनि भूपन सो और । कहत सकल आच्छेप हैं जे कविकुल सिरमौर ॥ १७९ ।। उदाहरण-कवित्त मनहरण पूरब के उत्तर के प्रबल पछाहँ हू के सब बादसाहन के गढ़ कोट हरते । भूपन कहैं यों अवरंग सों वजीर जीति लीवे को ___ युद्ध में मरे हुए लोग, कहा जाता है कि, सूर्य मंडल भेद कर स्वर्ग सिधारते हैं। २ अच्छो मेघा अर्थात् युद्धिवाले।