सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ २ ] व्याजस्तुति लक्षण-दोहा सुस्तुति में निंदा कट्टै निंदा में स्तुति होय । व्याजस्तुति ताको कहत कवि भूपन सब कोय ।। १७४ ।। निन्दा में स्तुति-ॐउदाहरण-कवित्त मनहरण · पीरी पीरी हुन्नै तुम देत हौ मँगाय हमैं सुबरन' हम सों परखि करि लेत हौ । एक पलही मैं लाख रूखन सों लेत लोग तुम राजा द्वै के लाख दीवे को सचेत हौ ॥ भूपन भनत महराज सिवराज बड़े दानी दुनी ऊपर कहाए केहि हेत हौ ?। रीझि हँसि हाथी हमें सब कोऊ देत कहा रीझि हँसि हाथी एक तुम- हिये देत हौ ? ॥ १७ ॥ तू तो रातो दिन जग जागत रहत वेऊ जागत रहत रातो दिन वनरत हैं। भूपन भनत तू विराजै रज भरो वेऊ रज भरे देहिन दरी मैं विचरत हैं ।। तूतौ सूर गन को विदारि विहरत

  • स्तुति में निन्दा का उदाहरण नहीं है।

१ सोना अथवा नुंदर वर्ण (अक्षर ) अर्थात् छंद के शब्द । २ लाख जो पलाशादि से निकलती है। ३ हाथ मिलाना । अर्थ हथेली का है। ४ पहाड़ी गुफा।