पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५७

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[ ६६ ] पुनः-दोहा साहितनै सिवराज की, सहज टेव यह ऐन । अनरीझे दारिद हरै, अनखीझे अरि सैन ।। १८७ ।। और दो विभावना . लक्षण-दोहा जहाँ हेतु पूरन नहीं, उपजत है पर काज । (दूसरी विभावना) के अहेतुते और चों, विभावना सान॥१८८॥ (चौथी विभावना) उदाहरण कारण अपूरे काज की उत्पत्ति । कवित्त मनहरण दच्छिन को दावि करि बैठो है सस्त खान पूना माहिं दूना करि जोर करवार को। हिंदुवानखंभ गढ़पति दलथंभ भनि भूषन भरैया कियो सुजस अपार को ।। मनसबदार चौकीदारन गँजाय महलन में मचाय महाभारत के भार को। तो सो को सिवाजी जेहि दो सौ आदमी सों जियो जंग सरदार सौ हजार असवार को. ॥ १८९ ॥ __ अहेतु ते कारज की उत्पत्ति । कवित्त मनहरण ता दिन अखिल खलभलें खल खलक मैं जा दिन सिवाजी गाजी नेक करखत हैं। सुनत नगारन अगार तजि अरिन की दारगन भाजत न वार परखत हैं। छूटे बार बार छूटे वारन ते करवाल, तलवार।