पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६०

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सलाम भान्यो साहि को इलाम धूम धाम के न मान्यो राम- सिंह को रजा । जासों बैर करि भूप वर्च न दिगन्त ताके दंत तोरि तखत तरे ते आयो सरजा ।। १९८।। असंगति (प्रथम) ____ लक्षण-दोहा हेतु अनत हो होय जह काज अनत ही होय । ताहि असंगति कहत हैं. भूपन मुमति समोय ।। १९९ ।। उदाहरण-कवित्त मनहरण महाराज सिवराज चढ़त तुरंग पर ग्रीवा जाति नै करि गनीम अतिबल की। भूपन चलत सरजा की सैन भूमि पर छाती दरकति है खरी अखिल खल की। कियो दौरि. घाव उमरावन अमीरन पै गई कटि नाक सिगरेई दिली दल की। सूरतै जराई कियो दाहु पातसाहु उर. स्याही जाय सब पातसाही मुख झलकी ।। २००॥ १ एलान, शिसहार, ( यहाँ पर ) हुक्म । २ ये जयपुराधीश महाराजा मिर्जा जयसिंह के पुत्र थे। जयसिए के साथ जय शिगजी दिली को गए, तब येही दिशोधर की ओर से उनको भगवानो को आप ये और उन्हें दिलो से निकल भागने में इन्होंने भी छिपकार सहायता दी थी। ३ पहले सन् १६६४ में और फिर १६७० में शिवाजी ने सूरत शहर को लूटा था। दोनों पार फरोपों का माल इनके हाथ लगा और बादशाह की बदो यदनामी हुई। वहाँ के केवल मुसलमानों को पदोंने लटा था।