पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ ६८ ] उदाहरण-मालती सवैया - दै दस पाँच रुपैयन को जग कोऊ नरेस उदार कहायो।' कोटिन दान सिवा सरजा के सिपाहिन साहिन को विचलायो । भूषन कोऊ गरीवन सों भिरि भीमहुँ ते वलवंत गनायो । दौलति इंद्र समान बढ़ी पै खुमान के नेक गुमान न आयो ।। १९५ ।। असंभव ... लक्षण-दोहा अनहूवे की बात कछ प्रगट भई सी जानि । तहाँ असंभव बरनिए सोई नाम बखानि ॥ १९६॥ ___उदाहरण--दोहा औरंग यो पछितात में करतो जतन अनेक ।

सिवा लेइगो दुरग सब को जानै निसि एक ॥ १९७ ॥

- अन्यच्च-कवित्त मनहरण जसन के रोज यों जल्स गहि वैठो जोव इंद्र आवै सोऊ लागै औरॅग की परजा । भूपन भनत तहाँ सरजा सिवाजी गाजी' तिनको तुजुक देखि नेकहू न लरजा ॥ ठान्यो न १ मुसलमानों में गाजी वह कहलाता था तो एक काफिर को मार डाले और वह दी सन्मान को पदवी यी। इसी सम्मान के कारण भूषणजी कदाचित् शिवाजी के नाम के साथ अनेक ठौर गालो लगा दिया करते थे, नहीं तो सच पूछिए तो इले मशुद्ध हो समझना चाहिए। गर्जनेवाला मी अर्थ हो सकता है। संभव है, भूपण मुसलमानों को मारनेवाले हिन्दू को गाजी कहते हों। २ शान, महत्व। .