पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६३

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[ ७२ ] ताजी ॥ बैर कियो सिवजी सों खवासखाँ' डौंडियै सैन बिजैपुर २ बाजी । वापुरो एदिल साहि कहाँ कहाँ दिल्लि को दामनगीर सिवाजी ? ॥२०६॥ ___लै परनालो सिवा सरजा करनाटक लौं सब देस बिबूंचे । वैरिन के भगे बालक बूंद कहै कवि भूषन दूरि पहूँचे ॥ नाँघत नाँघत घोर घने बन हारि परे यों कटे मनो कूँचे। राजकुमार कहाँ सुकुमार कहाँ बिकरार पहार वे ऊँचे ? ॥ २०७ ।। १ सन् १६७३ को घटना है । २ यह बीजापुर के प्रधान मंत्री खान मुहम्मद का लड़का था और स्वयं मंत्री भी या। जब प्रसिद्ध बादशाह अलोआदिलशाह (एदिल शाहो ) नृतशय्या पर था, तव उसने खवासखाँ को अपने नाबालिग पुत्र सुल्तान सिकंदर का वली व पालक ( Reg. ent and guardian ) सन् १६७२ में बनाया। शिवाजी से इसने कई समर किए पर यह स्वयं युद्ध में न गया। सन् १६७५ में यह छिपकर औरंगजेब से मिल गया और इसी कारण वहलोलखों ( छंद नं०१६ का नोट देखिए ) इत्यादि के इशारे पर मारा गया। ____३ छन्द नम्बर १०७ का नोट देखिए । यह छन्द सन् १६५९ के परनाला विजय तथा १६६१-६२ के करनाटक विद्रोह का कथन करता है। पश्चिमो करनाटक में शिवा जी ने नो गड़वड़ मचाई थी, उसका भी हवाला इस छन्द में माना जा सकता है । छन्द नं० ११७ का नोट देखिए । ४ छंद नं० ११७ का नोट देखिए। .