पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६६

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है नवाय निज सीस को। भूपन भनत भागनगरी' कुतुब साई' दै करि गँवायो रामगिरि से गिरीम को || भौसिला भुवाल साहि तनै गढ़पाल दिन दोउ ना लगाए गढ़ लेत पचतीस को । सरजा सिवाजी जयसाह मिरजा को लेत नौ गुनी बड़ाई" गढ़ दीन्हें हैं दिलीस को ।। २१३ | एक किला परेंदा नामक या जिसका अपभ्रंश परेशा जान पता है। या मी पद भइगदनगर का था और फिर आदिलशाए या हो गया जिससे सन् १६६० में ले मुगलों ने जीता जिनसे दूसरे की साल शिवाजी ने इसे छीन लिया। पद नं०११७ का नोट देखिए । शिवाजी ने यहाँ कर वसूल किया पर अधिकार नहीं पाया। २ कुतुबशाह । ०६२ फा नोट देखिए। ३ इस नाम का एक परगना था जिसमें इसो ( रामगिरि ) नाम की एक पहाड़ी है और इसीके पास रामगर गयया रामनेरि का किला भी था। यह गोलकुंडा की रियासत में था। छन्द नं० १७३ देखिए। ४ शायद पैतीस किले शिवाजी ने मिर्जा जयसिंह को भेंट किए थे। ५ अर्थात् आपने जयसिंह को दव कर फिले नहीं दिए वरन् हिंदू रुधिर यहाने के. ठोर अपनी हार मान कर उन्हें गढ़ दिए जिससे भागकी पढ़ाई हुई और यश बढ़ा । छंद के पर लेवाले दोहे में भूपणजी ने यह शिवाणी के यश यढ़ाने का कारण कहा है पर बली ही चतुराई से इसे "विचित्र" मलंकार के उदाहरण में लिखा।

  • विचित्र के दोनों उदाहरण तृतीय असंगति से भी कुछ कुछ मिल जाते हैं।.

असंगति में कार्य का पूरा होना कहा जाता है किन्तु विचित्र में नहीं।