पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ७८ ]

कविताई तव हाथ की बड़ाई को बखान करि जात है ? जाको जस टंक सात दीप नव खंड महि मंडल की कहा ब्रहमंड ना समात है ।। २२१ ॥

अन्योन्य
लक्षण-दोहा

अन्योन्या उपकार जहँ यह वरनन ठहराय । ताहि अन्योन्या कहत हैं अलंकार कविराय ॥ २२२ ॥

उदाहरण-मालती सवैया

तो कर सों छिति छाजत दान है दान हू सों अति तो कर छाजै। तेही गुनी की वड़ाई. सजै अरु तेरी बड़ाई गुनी सव साजै ॥ भूपन तोहि सों राज विराजत 'राज सों तू सिवराज विराजै। तो बल सों गढ़ कोट गजें अरु तू गढ़ कोटन के बल गाजै ॥ २२३ ॥

विशेष
लक्षण-दोहा

वरनत हैं आधेय को जहँ बिनही आधार । ताहि विसेप बखानहीं भूपन कवि सरदार ।। २२४ ।।

उदाहरण-दोहा

. सिव सरजा सों जंग जुरि चंदावत' रजवंत । १ अमरसिंह चंदावत । छंद नं०९७ का नोट देखिए :