पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१७६

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[ ८५ ] सिवाजी खुमान या जहान पर कौन पातसाह के न हिए खरकतु है ? ॥ २४२॥ एक में अनेक अगर के धूप धूम उठत जहाई तहाँ उठत वगरे अब अति ही अमाप है। जहाई कलावत अलापें मधुर स्वर तहाई भूत-प्रेत अव करत विलाप हैं । भूपन सिवाजी सरजा के वैर वैरिन के डेरन मैं परे मनो काहु के सराप हैं। बाजत हे जिन महलन में मृदंग तहाँ गाजत मतंग सिंह वाघ दीह दाप हैं ।। २४३ ।। परिवृत्ति लक्षण-दोहा एक बात को दे जहाँ आन बात को लेत । ताहि कहत परिवृत्ति हैं भूपन सुकवि सचेत ॥ २४४ ॥ उदाहरण-कवित्त मनहरण दच्छिन धरन धीर धरन खुमान, गढ़ लेत गढ़ धरन सों धरम दुवारे दै। साहि नरनाह को सपूत महाबाहु लेत मुलुक महान छीनि साहिन को मारु दै ।। संगर मैं सरजा सिवाजी अरि सैनन को सारु हरि लेत हिंदुवान सिर सारु दै । भूपन भुसिल जय जस को पहारु लेत हरजू को हारु हरगन को अहारु दै ॥ २४५॥ १ सन् १६४७ में शिवाजी ने तीन भाइयों का भापती शगमा ते करने को जाकर पुरंदर किला प्राप्त किया था। इसी से धर्म द्वार देकर गढ़ लेना कहा जा सकता है। यह भी अर्थ होता है कि धर्मराज का द्वार ( मृत्यु ) देकर गढ़ लेते है ।