पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१७७

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[ ८६ ] परिसंख्या 8 लक्षण-दोहा अनत वरजि कछु वस्तु जहँ वरनत एकहि ठौर। तेहि परिसंख्या कहत हैं भूपन कवि दिलदौर ॥ २४६ ॥ उदाहरण-मनहरण दंडक अति मतवारे जहाँ दुरदै निहारियत तुरगन ही में चंचलाई परकीति है। भूषन भनत जहाँ पर लगें वानन में कोक पच्छि- नहि माहिं बिछुरन रीति हैं । गुनि गन चोर जहाँ एक चित्त ही के, लोक वंधैं जहाँ एक सरजा की गुन-प्रीति है । कंप कदली मैं वारि बुंद बदली मैं सिवराज अदली के राज में यों राजनीति है ॥ २४७ ॥ विकल्प लक्षण-दोहा कै वह कै यह कीजिए जहँ कहनावति होय । ताहि विकल्प बखानहीं भूपन कवि सब कोय ॥ २४८ ॥ 9 पर्यस्तापन्हुति में स्थापना पहलेही रूप में होती हैं, किन्तु परिसंख्या में कहने भर को वही रूप होकर भी वास्तविक प्रयोजन वदल जाता है। जैसे कदली में कम्प स्वभावज है, किन्तु मनुष्यों मे दोष रूप भयादि के कारण से। इसका दूसरा पाठ यों है "कंप............सिवराज अदली में मदली का राज. नीति है।