पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१८

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अमरेश-विलास ग्रंथ संवत् १६९८ या सन् १६४१ में बना, ऐसा खोज में मिला है। इससे भी भूषण का जन्म-काल सन १६१५ के लगभग बैठता है, किन्तु यह निष्कर्ष सन्दिग्ध है क्योंकि जटा. शंकर का भूषण का भाई होना अनिश्चित है। - यह बात प्रसिद्ध है कि पहले भूषणजी बिल्कुल अपढ़ और निकम्मे थे एवं चिंतामणिजी कमासुत और कुटुंब के आधार थे। भूपण सदा घर बैठे बैठे वग़लें बजाया करते और बड़े भाई की कमाई से पेट भरा करते थे। एक दिन भोजन करते समय भूषण ने अपनी भावज से लवण माँगा । उसने क्रोध से कहा-"हाँ, बहुत सा नमक तुमने कमाकर रख दिया है न, जो उठा लाऊँ !” यह बात इन्हें असह्य हो गई और इन्होंने मुँह का ग्रास उगलकर कहा-'अच्छा, अब जब नमक कमा कर लावेंगे, तभी यहाँ भोजन करेंगे।" ऐसा कह भूषणजी खाली हाथ घर से यों ही निकल पड़े और कहते हैं कि इन्होंने अपनी जिह्वा काट कर श्रीजगदंबाजी पर चढ़ा दी और एक दम भारी कवीश्वर हो गए। इस बीसवीं शताब्दी में लोग शायद ऐसी बातों पर विश्वास न कर सकें, पर कम से कम जीभ का काटना संभव हो सकता है। हमने एक भाट को देखा है, जिसने इसी भाँति श्रीदेवीजी पर अपनी जिह्वा कुछ ही दिन पूर्व चढ़ाई थी। दासापुर के वलदेव कवि ने भी अपनी जिह्वा काट कर देवीजी पर चढ़ाई थी। उनकी कटी हुई जिह्वा हमने देखी है। अस्तु जो हो, इसमें सन्देह नहीं कि भूपण जी ने इसी समय