पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९३

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[ १०२] तापर हिंदुन की सव राहनि नौरंगसाहि करी अति मैली ।। साहि तनै सिव के डर सों तुरको गहि वारिध की गति पैली । वेद पुरानन की चरचा अरचा दुज देवन की फिरि फैली ।।२९३॥ अतद्गुण लक्षण-दोहा जहँ संगति ते और को गुन कछूक नहिं लेत । ताहि अतद्गुन कहत हैं भूषन सुकवि सचेत ॥ २९४ ॥ उदाहरण-मालती सवैया दीन दयालु दुनी प्रतिपालक जे करता निरम्लेच्छ मही के। भूपन भूधर उद्धरिवो सुने और जिते गुन ते सब जी के ॥ या कलि मैं अवतार लियो तऊ तेई सुभाय सिवाजि बली के । आय धस्यो हरि ते नर रूप पै काज करै सिगरे हरिही के ॥२९५॥ पुनः-कवित्त मनहरण सिवाजी खुमान तेरो खग्ग वढ़े मान बढ़े मानस लौं वद- लत कुरुप उछाह' ते । भूपन भनत क्यों न जाहिर जहान होय प्यार पाय तो से ही दिपत नर नाह ते ॥ परताप फेटो रहो सुजस लपेटो रहो वरनत खरो नर पानिप अथाह ते । रंग रंग रिपुन के रकत सों रंगों रहै रातो दिन रातो पै न रातो होत स्याह ते ॥ २९६॥ १ मानसरोवर को भाँति वेरुखो उछाह में परिणत हो जाती है।