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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९४

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[ १०३ ] अपरंच । दोहा सिव सरजा की जगत मैं राजति कीरति नौल । अरि तिय अंजन हग हरै तऊधौल की धौल ॥ २९७ ॥ अनुगुण लक्षण-दोहा जहाँ और के संग ते बढ़े आपनो रंग । ता कहँ अनुगुन कहत हैं भूपन बुद्धि उतंग ।। २९८ ॥ उदाहरण-कवित्त मनहरण साहि तनै सरजा सिवा के सनमुख आय कोऊ बचि जाय न गनीम भुज बल में । भूपन भनत भौंसिला की दिलदौर सुनि 'धाक ही मरत म्लेच्छ औरंग के दल मैं । रातौ दिन रोवत रहत यवनी हैं सोक परोई रहत दिली आगरे सकल मैं । कजल कलित असुवान के उमंग संग दूनो होत रोज रंग जमुना के जल में ।।२९९॥ मीलित लक्षण-दोहा सहश वस्तु मैं मिलि जहाँ भेद न नेक लखाय । ताको मीलित कहत हैं भूपन जे कविराय ।। ३०० ।। ___ उदाहरण-कवित्त मनहरण इंद्र निज हेरत फिरत गज-इंद्र अरु इंद्र को अनुज' हेरै १द्र के छोटे भाई अर्थात् विष्णु जो क्षीर समुद्र में शयन करते हैं। .