पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९७

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[ १०६ ] भयो जान्यो न परत कौन आयो कौन दल ते। सम वेप ताके, ‘तहाँ सरजा. सिवा के वाँ के वीर जाने हाँके देत, मीर जाने 'चलते ॥ ३०७ ।। पिहित । लक्षण-दोहा परके मन की जानि गति ताको देत जनाय । कछू क्रिया करि,कहित हैं पिहित ताहि कविराय ॥ ३०८ ॥ . उदाहरण-दोहा गैर मिसिल ठाढ़ो सिवा अंतरजामी नाम । प्रकट करी रिस, साहि को सरजा करि न सलाम ॥३०९॥ आनि मिल्यो अरि, यो गह्यो चखन चकत्ता चाव । साहि तनै सरजा सिवा दियो मुच्छ पर ताव ।।३१०॥ प्रश्नोत्तर लक्षण-दोहा कोऊ झै बात कछु कोऊ उत्तर देता प्रश्नोत्तर ताको कहत भूषन सुकवि सचेत ।। ३११ ॥ . १ वीर रस अपूर्ण । .. पहले प्रश्नोत्तर में अभंग सभंग द्वारा प्रश्न ही में उत्तर निकलता है, तथा दूसरे में कई प्रश्नों का एक हो उत्तर होता है। भूषण का दूसरा उदाहरण तो ठीक है, किन्तु “पहले में अभंग सभंग का समावेश न तो लक्षण में है न उदाहरण में। जैसे प्रश्न-को करत कामिनी को मनभायो ? उत्तर-कोक रत । यहाँ सभंग द्वारा प्रश्न ही में उत्तर निकल आया।