पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९९

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[ १०८ ] ___ पुनः-दोहा सिवा वैर औरंग बदन लगी रहै नित आहि । कवि भूपन वूझे सदा कहै देत दुख साहि' ॥ ३१६ ॥ लोकोक्ति एवं छेकोक्ति लक्षण-दोहा कहनावति जो लोक की लोक उकुति सो जानि । जहाँ कहत उपमान है छेक उकुति तेहि मानि ॥३१७|| उदाहरण लोकोक्ति-यथा--दोहा सिव सरजा की सुधि करौ भली न कीन्ही पीव । सूवा है दच्छिन चले धरे जात कित जीव ? ।। ३१८ ।। ___ छेकोक्ति-यथा-दोहा जे सोहात सिवराज को ते कवित्त रस मूल । जे परमेस्वर पै चढें तेई आछे फूल ।। ३१९ ॥ पुनः-किरीटी सवैया औरंग जो चढ़ि दक्खिन आवै तो ह्याँते सिधावै सोऊ बिनु करि त्योर ठए हैं। भेटत ही सब हो सों कहैं हम या दुनियाँ ते उदास भए हैं।" शाही; राज्यभार । २ इस सवैया में “वसुधा' अर्थात् आठ भगण होते हैं । एक गुरु फिर दो लघु -अक्षर भगण । इसमें प्रायः किसी का अपमान किया जाता है।