पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२००

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[ १०९ कप्पर । दीनो मुहीम को भार बहादुर' छागो' सहै क्यों गयंद का झप्पर ? ॥ सासता खाँ सँग वे हठि हारे जे साहब सातएँ ठीक भुवप्पर । ये अब सूबहु आवै सिवा पर “काल्हि के जोगी कलींदे को खप्पर" ॥ ३२० ।। • वक्रोक्ति लक्षण-दोहा जहाँ श्लेष सों काकु सों अरथ लगावै और । वक्र उकुति ताको कहत भूपन कवि सिरमौर ।।३२१॥ उदाहरण श्लेप से वक्रोक्ति-कवित्त मनहरण साहि तनै तेरे वैर वैरिन को कौतुक सों बूझत फिरत कही काहे रहे तचि हौ ? । सरजा के डर हम आए इतै भाजि तब सिंह सों डराय याहू ठौर ते उकचि हौ । भूषन भनत वै कहैं कि हम सिव कहैं तुम चतुराई सों कहत वात रचि हौ। सिव १ कदाचित् यह खानबहादुर खाजहाँ वहादुर के विषय में हो। इसका हाल छंद नं० ९६ में बहलोलवाले नोट में देखिए । २ बकरा; छगरा। ३ तरबूजा । "नई नाइन वांस का नहन्ना" की तरएं यह भी एक कहावत है। ४ स्वर फिराकर अर्थ का बदलना। ५ उचकोगे; उठ भागोगे। सरजा यहाँ सिंह के अर्थ में आया है। सर जाह ऊँची पदवीवाले को कहते हैं और सिंह का पद ऊँचा है ही। .