पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२०२

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[ १११ ] हियो ललकत है। साहि के सपूत सिव साहि के बदन पर सिव की कथान मैं सनेह झलकत है ।। भूपन जहान हिंदुवान के उबारिवे को तुरकान मारिवे को वीर वलकत है। साहिन सों लरिवे की चरचा चलति आनि सरजा के दृगन उछाह छलकत है ॥ ३२६ ॥ काहू' के कहे सुने ते जाही ओर चाहैं ताही ओर इकटक घरी चारिक चहत हैं। कहे ते कहत बात कहे ते पियत खात भूपन भने ऊँची साँसन जहत हैं । पौढ़े हैं तो पौढ़े बैठे बैठे खरे खरे हम को हैं कहा करत यों ज्ञान न गहत हैं। साहि के सपूत सिव साहि तव वैर इमि साहि सब रातौ दिन सोचत रहत हैं ॥३२७॥ ___उमड़ि कुड़ाल3 मैं खवास खान आए भनि भूपन त्यों धाए सिवराज पूरे मन के। सुनि मरदाने वाजे हय हिहनाने घोर मूछ तरराने मुख वीर धीर जन के ॥ एकै कहैं मार मार सम्हरि समर एकै म्लेच्छ गिरे मार बीच बेसम्हार तन के। १ भयानक रस। २ देखते हैं। ३ इसे शिवाजी ने सावन्त वादी के रईस से सन् १६६१ में जीता। पहले यहाँ खवास खा ससैन्य आया था, किंतु फिर करनाटक चला गया। तव शिवाजी ने कुडाल ले लिया।