पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२०९

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[ ११८ ] विधुंसिवे को भयो यदुराय वसुदेव को कुमार है। पृथी पुरहूत साहि के सपूत सिवराज म्लेच्छन के मारिवे को तेरो अवतार है ॥ ३४८॥ अनुमान लक्षण-दोहा जहाँ काज ते हेतु कै जहाँ हेतु ते काज । जानि परत, अनुमान तहँ कहि भूषन कविराज ॥ ३४९ ।। काज से हेतु का अनुमान-उदाहरण-मनहरण दंडक चित्त अनचैन आँसू उमगत नैन देखि वीवी कहैं वैन मियाँ कहियत काहि नै ? । भूपन भनत बूझे आए दरवार ते कँपत वार बार क्यों सम्हार तन नाहिनै ? ॥ सीनो धकधकत पसीनो आयो देह सव होनो भयो रूप न चितौन बाएँ दाहिनै । सिवाजी की संक मानि गए हौ सुखाय तुम्हें जानियत दक्खिन को सूवा करो साहि नै ।। ३५० ॥ __अंझा' सी दिन कि भई संझा सी सकल दिसि गगन लगन रही गरद छवाय है। चील्ह गीध वायस समूह घोर रोर करें ठौर ठौर चारों ओर तम मड़राय है। भूपन अँदेस देस देस के नरेस गन आपुस मैं कहत यों गरव गँवाय है । वड़ो बड़वा को जितवार चहुँघा को दल सरजा सिवा को जामियत इत आयहै ॥ ३५१॥ १ नागा अर्थात् दिन गायब सा हो गया।