पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२१०

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[ ११९ ] अथ शब्दालंकार दोहा जे अरथालंकार ते भूपन कहे उदार । अब शब्दालंकार ये कहियत मति अनुसार ।। ३५२ ॥ छेक एवं लाट अनुप्रास .. लक्षण-दोहा सुर समेत अच्छर पदनि आवत सहस प्रकास । भिन्न अभिन्नन पदन सों छेक लाट अनुप्रास ।। ३५३ ॥ . उदाहरण-अमृतध्वनि छंद दिल्लिय दलन दवाय करि सिव सरजा निरसंक । लूटि लियो १ इसमें छः पद होते हैं जिनमें प्रथम दो मिलकर एक दोहा होते हैं, और चार अंतिम पदों में काव्य छंद होता है। अंत के चारों पदों में आठ आठ कलाओं के पीछे यति होती है। हमने जिन आचार्यों के लिए हुए लक्षण देखे, उन्होंने यह नहीं लिखा है कि इस छंद के पदों का अंतिम अक्षर अवश्य लघु होता है, पर यह बात सदा पाई जाती है । भूपणजी इसमें कुंडलिया की भांति प्रथम के एक या दो शब्द अंत में भी अवश्य लाते हैं, यद्यपि यह आवश्यक नहीं है। अन्य कवियों की अमृतध्वनियों में थोड़े बहुत शब्द अथवा अक्षरसमूह निरर्थक आ जाते हैं. पर भूपणजो इस दोष से खूब ही बचे हैं। इसका नाम जैसा अच्छा है, वैसा ही यह पढ़ने में बड़ा टेढ़ा छंद हैं। इसका नाम तो विषध्वनि' होता तो ठीक था।