पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२१५

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[ १२४ ] डंडि' मचत जहँ ।। इमि ठानि घोर वमसान अति भूपन तेज 'कियो अटल । सिवराज साहि सुव खग्ग बल दलि अडोल चहलोल दल ॥ ३५८ ॥ कुद्ध फिरत सति युद्ध जुरत नहिं रुद्ध मुरत भट । खग्ग बजत अरि बग्ग तजत सिर पग्ग सजत चट || दुक्कि फिरत मद । झुक्कि भिरत करि कुक्कि गिरत गनि । रंग रकत हर संग छकत चतुरंग थकत भनि ॥ इमि करि संगर अति ही विषम भूपन सुजस कियो अचल । सिवराज साहि सुव खग्ग बल दलि अडोल बहलोल दल ।। ३५९ ॥ पुनरपि-कवित्त मनहरण बानर वरार" वाघ वैहर विलार विग वगरे वराह जान- वरन के जोम हैं। भूपन भनत भारे भालुक भयानक हैं भीतर भवन भरे लीलगऊ लोम हैं। ऐंडायल गज गन गैड़ा गररात गनि गेहन में गोहन' गरुर गहे गोम' हैं। सिवाजी कि १ दंड लेने की; डाँड़ लेने की । २ घोड़े की वाग। ३ मजे के नाच में । रकत फारसो में नाच को कहते हैं। ४ साथी गण ( यहाँ पर हर के साथी अर्यात् भूत प्रेत) ! ५ बरियार। ६ मेडिया। . ७ लोमड़ो। ८ गोह नामक जंतुओं ने। ९ स्थान. । (यह शब्द गाँव से निकला है )