पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३२

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[ १४१ ] साँच को न माने देवी देवता न जानै अरु ऐसी उर आने मैं कहत बात जब की। और पातसाहन के हुती चाह हिंदुन की अकवर साहजहाँ कहें साखि तव की ।। बब्बर के तिब्बर' हुमायूँ हद्द वा धि गये दो मैं एक करी ना कुरान वेद ढव की । कासिहु की कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न हो तो तो सुनति होति सब की ॥ २१ ॥ ___ कुंभकर्न असुर औतारी अवरंगजेब कीन्ही कत्ल मथुरा दोहाई फेरी रव की। खोदि डारै देवी देव सहर मुहल्ला बाँके लाखन तुरुक कीन्हे छूटि गई तब की ॥ भूपन भनत भाग्यो कासीपति विश्वनाथ और कौन गिनती मैं भूली गति भव की। चारौं वर्न धर्म छोड़ि कलमा नेवाज पढ़ि सिवाजी न होतो तौ सुनति होति सव की ॥२२॥ १ तीन बार। २ कुरान और वेद की जो दो ढयें है उनको एक में न किया, अर्थात् वेद की रोतियों के उठाने का प्रयल न किया । ३ सन् १६६९ ई. में औरंगजेब ने देहरा केशवराय को मथुरा में तोड़ा। इसे महाराज वीरसिंहदेव बुंदेला ने ३३ लक्ष मुद्रा लगाकर वनवाया था। ४ औरंगजेब ने विश्वनाथजी का मंदिर सन् १६६९ ई० में तोड़ा । उसी समय कहा जाता है कि श्रीविश्वनाथजी की मूर्ति मन्दिर से शानवापी नामक कूप में (जो मन्दिर के पिछवाड़े है ) जाकर कूद पड़ो। ५ कलमा यह है-"ला इलाहे इडिल्लाः मुहम्मद उल्रसूलिहा:" अर्थात् सिवाय