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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३८

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[ १४७ ] खाँ को जिन खाक किया साल की सुरति आजु सुनी जो अवाज है। चौंकि चौंकि चकता कहत चहुँघा ते यारौ लेत रहो खवरि कहाँ लौ सिवराज है ॥ ३३॥ . फिरगाने फिकिरि ओ हद सुनि हबसाने भूपन भनत कोऊ सोवत न घरी है। बीजापुर बिपति बिडरि सुनि भाज्यो सब दिल्ली । दरगाह बीच परी खरभरी है ॥ राजन के राज सव साहिन के सिरताज आज सिवराज पातसाही चित धरी है । बलख बुखारे कसमीर लौ परी पुकार धाम धाम धूमधाम रूम साम परी है ॥ ३४ ॥ गरुड़ को दावा सदा नाग के समूह पर दावा नाग जूह पर सिंह सिरताज को । दावा पुरहू को पहारन के कुल पर पच्छिन के गोल पर दावा सदा बाज को ॥ भूपन अखंड नव- खंड महिमंडल में तम पर दावा रवि किरन समाज को। पूरब पछाँह देस दच्छिन ते उत्तर लौं जहाँ पादसाही तहाँ दावा सिवराज को ।। ३५ ॥ १ पूर्ण भयानक रस । २ वावर के पिता का राज्य । ३ इस छंद में शिवानी के अभिषेक का कथन है। ४ भयानक रस ५ निदर्शना लहार । ६ इन्द्र।