पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२४१

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[ १५० । सिवा की वड़ाई औ हमारी लघुताई क्यों कहत वार बार कहि पातसाह गरजा । सुनिये, खुमान' हरि तुरुक गुमान महि देवन जेवायो, कवि भूपन यों सरजा ।। तुम वाको पाय के जरूर रन छोरो वह रावरे वजीर छोरि देत करि परजा। मालुम तिहारो होत याहि मैं निवारो रनु कायर सो कायर औ सरजा सों सरजा ॥ ४१ ॥ ___कोट गढ़ ढाहियतु एकै पातसाहन के एकै पातसाहन के देस दाहियतु है। भूपन भनत महाराज सिवराज एकै साहन की फौज पर खग्ग वाहियतु है । क्योंन' होहिं वैरिन की बौरी सुनि वैर वधू दौरनि तिहारे कहौ क्यों निवाहियतु है। रावरे नगारे सुने वैरवारे नगरनि नैनवारे नदन निवारे चाहि- यतु है ॥ ४२ ॥ . चकित चकत्ता चौकि चौंकि उठे वार वार दिल्ली दहसति चित चाहै खरकति है। विलखि वदन विलखात विजैपुर पति फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है ॥ थर थर काँपत कुतुब साहि गोलकुंडा हहरि हवस भूप भीर भरकति है । राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि केते पातसाहन की छाती दरकति है ॥४३॥ १ शिवानो। २ भयानक रस । वैर [ शिवाजी ते ] तुन वैरिन की वधू क्यों वौरी न होहिं । ३ चंचलातिशयोक्ति। ४ भयानक रस ।