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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२४२

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[ १५१ ] मोरंग' कुमाउँवौ पलाऊ बांधे एक पल कहाँ लौं गनाऊँ जेऽव भूपन के गोत हैं। भूपन भनत गिरि विकट निवासी लोग, बावनी बवंजा नव कोटि धुंध जोत हैं ।। काबुल कंधार खुरासान जेर कीन्हो जिन मुगल पठान सेख सैयद्हु रोत हैं । अव लगि" जानत हे वड़े होत पातसाह सिवराज प्रगटे ते राजा बड़े होत हैं ॥४४॥ ___ दुग्ग पर दुग्ग जीते सरजा सिवाजी गाजी डग्ग नाचे दुग्ग पर रुंड मुंड फरके । भूपन भनत बाजे जोति के नगारे भारे सारे करनाटी भूप सिंहल को सरके ॥ मारे सुनि सुभट पनारेवारे उदभट तारे लगे फिरन सितारे गढ़धर के। वीजा- १शि० भू० छंद नं०२४९ का नोट देखिए । ' २ 'भागना हो सकता है, 'पला' भी। पला नामक एक ग्राम यमुना जी के किनारे था। . ३ वजूना नामक एक स्थान फतेहपुर सिकरो के पास था। उत्तर पश्चिमी बोली... में वावन को बवजा कहते हैं । वावनी बुंदेलखंड में एक मुसल्मानी रियासत है। इसी से वायनीके पीछे ववंजा लगाया गया है। करनाटक के युद्ध में शिवाजी ने वावन गिरि जीता था। सम्भव है, बावनी शब्द से उसी का अभिप्राय हो । ४ धुंधली नोति के अर्थात् तेजहत । ५ काव्यलिंग अलंकार। ६ यह छंद स्फुट कविता से यहाँ आया है। ७ करनाटक पर शिवाजी ने सन् १६७६-७८ में आक्रमण किया । ८ इस छंद में पनारे गढ़ का वर्णन तीसरी जीत सन् १६७६ वाली का है। परनाले में सन् १६५९-१६६० ई० एवं सन् १६७३ में भी लड़ाई हुई थी।