[ १५६ ] समद लौं समद की सेना त्यों बुंदेलन की सेलें समसेरै भई वाड़व की लपटें ।।६॥ . हैवर हरदृ साजि गैबर गर? सम पैदर के ठट्ट फौज जुरी तुरकाने की। भूषन भनत राय चंपति को छत्रसाल रोप्यो रन ख्याल लैकै ढाल हिंदुवाने की ॥ कैयक हजार एक बार वैरी मारि डारे रंजक द्गनि मानो अगिनि रिसाने की। सैद अफगर्ने सेन सगर सुतन लागी कपिल सराप लौं तराप तोपखाने की ॥७॥ चाक चक चमू के अचाक चक चहूँ ओर चाक सी फिरति धाक चंपति के लाल की। भूपन भनत पातसाही मारि जेर कीन्हीं काहू उमराव ना करेरी करवाल की ॥ सुनि सुनि • अब्दुस्समद दिल्ली का एक. सरदार था। वेतनदी के किनारे सन् १६६० ई० के करीब यह छत्रसाल से भारी युद्ध में हारा । १ हृष्ट पुष्ट। . २ गजवर; मच्छे हाथी । ३ समूह । ४ उसी भाँति के सैनिक युक्त । ५ सैद अफगन दिल्ली का एक सरदार था और छत्रसाल से लड़ने को भेजा गया था। छत्रसाल ने उसे पराजित किया। लाल कवि कृत छत्र-प्रकाश देखिए । मटौंध जीतने के बाद छत्रसाल ने पहले स्वयं विचलित होकर फिर घोर युद्ध कर इसे हराया था, तब इसकी जगह शाह कुली नियत हुआ था। यह सन १७०० की घटना है। ६ चाक; मोटी ताजी। ७ अचानक । ८ तलवार।
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