[ १६० ] रीति बिरदैतक के बड़प्पन की थप्पन उथप्पन की बानि छन्न- साल की। जंग जीतिलेवा ते वे कैकै दामदेवा' भूप सेवा लागे करन महेवा महिपाल की॥ ८॥ ___ कोवे को समान प्रभु ढूंढि देख्यो आन पै निदान दान युद्ध में न कोऊ ठहरात हैं। पंचमै प्रचंड भुज दंड को बखान सुनि भागिवे को पच्छी लौं पठान थहरात हैं ॥ संका मानि सूखत अमीर दिलीवारे जब चंपति के नंद के नगारे घहरात हैं। चहूँ ओर चकित चकत्ता के दलन पर छत्ता के प्रताप के पताके फहरात हैं ॥९॥ राजत अखंड तेज छाजत सुजस वड़ो गाजत गयंद दिग्ग- जन हिय साल को । जाहि के प्रताप सों मलीन आफताप होत ताप तजि दुजन करत बहु ख्याल को ॥ साज सजि गज तुरी" पैदरि कतार दोन्हे भूषन भनत ऐसो दीन प्रतिपाल को ?
- यश वर्णन करनेवाला।
१ कर देनेवाले। २ पंचमसिंह बुंदेलों के पूर्व पुरुष थे । महाराज कुंदेल ( जो सुंदेलों के पुरखा थे ) इनके पुत्र थे। पंचमसिंह बड़े प्रतापी और विंध्यवासिनी देवी के बड़े भारो भक्त थे। ३ पूर्णोपमा, चंचलातिशयोक्ति, पूर्णभयानक रस । यह छंद स्फुट कविता से यहाँ आया है। ४ आफताब, सूर्य। ५ घोड़ा।