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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२५९

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[ १६८ ] . डंका के दिए ते दल डंबर' उनंड्यो, उडमंड्यों उड-मंडल लौं खुर की गरह है। जहाँ दाराशाह बहादुर के चढ़त, पैड़, __पैड़ में मढ़त मारु-राग बंव नद है । भूपन भनत घने घुम्मत हरौलवारे, किम्मत अमोल बहु हिम्मत दुरद है। हद्दन छपद महि मह फर नह होत कदन भनद से जल६५ हलद्द है ।। १६ ॥ उलदत मद अनुमद ज्यो जलधि जल बल हद भीम कद काहू के न आह के। प्रबल प्रचंड गंडं मंडित मधुप बूंद विंध्य से बुलंद सिंधु सात हू के थाह के ॥ भूपन भनत झूल झस्पति झपान झुकि झूमत झुलत झहरात रथ डाह के । मेघ- से घमंडित मजेजदार तेज पुंज गुंजरत कुंजर कुमाऊँ नरनाह के१० ॥ १७॥ १ धूम धाम। २ नक्षत्र मंडल तक उड़ाकर धूलि मंडित कर ( मढ़) दी। ३ पैंड के अर्थ डग तथा मार्ग दोनों है। ४ संसार की सीमाओं तक ( हाथियों के मदजल के कारण ) मौरे मरे हैं अथच गनों के मद जल से पृथ्वी फट कर नद हो जाते हैं। ५ उन हाथियों के कदों (शरीरों) से नम नद (आकाश गंगा आदि) के समान वादल हिलते हैं, अर्थात् वे इसने ऊँचे हैं कि उनके द्वारा आकाश नद तथा जलद दोनों हिलते हैं। ६ डालते हैं, उँडेलते हैं। ७ मद पर मद। ८ कनपटी । ६ एक प्रभावसूचक पद, शानदार । १० अनुप्रास, पूर्णोपमा । इस छंद के साथ एक जनश्रुति है। भूषण ने जव कुमाऊँ