पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२६०

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[ १६९ ] बलख बुखारे मुलतान लौ हहर पारै कपि लो पुकारै कोऊ धरत न सार' है। रूम लँदि डारे खुरासान चूदि मारै खाक खादर लौं झारै ऐसी साहु की वहार है ।। ककर लौं बक्खर लौं मकर लौं चले जात टक्कर लेवैया कोऊ वार है न पार है। .. भूपन सिरोज लौं परावने परत फेरि दिली पर परति परिंदन की छार है ॥ १८ ॥ नरेश के यहाँ जाकर यह छंद मुनाया था, तो उन्हें संदेह हुआ कि स्यात् नो यह सुनते थे कि शिवानी ने इन्हें लाखों रुपये दिए, वह गलत है, नहीं तो ये मेरे यहाँ क्यों आते, किंतु तो भी इस बात पर निश्चय न होने से इन्हें राजसम्मानित कवि समझ कर उसने एक लाख रुपये विदाई में दिप, परंतु भूषण ने वह धन कुमायूँ नरेश ( उद्योत. सिंह) को वापस करके कहा कि मेरा प्रयोजन कुमायूँ आने से केवल शिवाजी का यशवर्द्धन था । शिवाजी की कृपा से अब रुपए पैसे की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी। यह कथन चिटनीस वखर के आधार पर है। १ लोहे का सार, इस्पात के अस्त्र । २ खादर नदी के निकट की नीची भूमि को कहते हैं। इसमें रूखापन भी बहुत होता है। ३ शिवाजो का पौत्र । छं० द० छं० नं० १० का नंट देखो। ४ एक कोकर देश मुलतान के पास है। एक कोकरा देश उड़ीसा और दक्षिण के बीच में है। कोकरमंडा का एक दुर्ग तापती नदी के उत्तर किनारे पर है । ५ एक भक्खर गुजरात के पास और एक भाकर मुलतान के निकट था । ६ मकरान नामक एक स्थान सिंध के निकट था। ७ नर्मदा नदी के वार पार का प्रयोजन है। ८ शीराज हो सकता है । सिरोज नामक एक स्थान बुंदेलखंड के पास है और एक सागर के निकट भी। ९ पूर्णोपमा, भयानक रस ।