पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२७२

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[ १८१ ] भारत सो भारी भयो जुद्ध विकराल है। पार जावली के बीच गढ़ परताप तरे सुनौ भई सोनित सों अजौं धरा लाल है ॥४७॥ _____कत्ता के कसैया महाबीर सिवराज तेरी रूमके' चकत्ता तक संका सरसात है। कासमीर काबुल कलिंग कलकत्ता अरु कुलि करनाटक की हिम्मति हेराति है । विकट बिराट वंग व्याकुल बलख वीर बारहौ विलायती सकल बिललात है । तेरी धाक धुंधरि धरा में अरु धाम धाम अंधाधुंध५ अंधी सी हमेस हहरात है ॥४८॥ वन्द कीन्हे बलख सो, वैर कीन्हो खुरासान, कीनी हवसान पर पातसाही पतहीं । वेद कल्यान घमसान कै छिनाय लीन्हे जाहिर जहान उपखान येहो चलहीं ॥ जंग करि जोर सों निजाम साहि जेर कीनो, रन में नमाये हैं, रुहेले छल बतहीं। साहन के देस लूटे साहजी के सिवराज कूटी फौज अजौं मुगलान हाथ मलहीं ॥४९॥ १ रूम (टी) के चगताई खाँ के यहाँ तक । २ उड़ीसा। ३ अलवर और जेपूर का प्रदेश । ४ धुंधी, आसमान में उढ़ती हुई मिट्टी । ५ धुंधी हल्की होती है किन्तु शिवाजी की धाक की धुंधी भारो आंधी के समान हाहाकार मचाए हुए है। ६ एक पल भर में।