पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२७१

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[ १८० 1 . तेरी धाकही ते नित हवसी फिरंगियो विलायती विलेन्दे करै वारिधि विहरनो । भूपन भनत बीजापुर भागनेर दिली तेरे वैर भयो उमरावन को मरनो ॥ चारौं दिसि दौरि केते जोर के मुलुक लूटें कहा लगि साहस सिवाजी तेरो बरनो । आठ दिगपाल त्रासि आठौ दिसि जीतिवे को आठ पातसाहनसो आठौं जाम लरनो ॥४४॥ दौरि चढ़ि ऊँट फरियाद चहुँ खूट किये सूरति को कूटि सिवा लूटि धन लै गयो। कहैं ऐसे आप आमखास बीच साहही सों कौन ठौर जायें दाग छाती वीच दै गयो । सुनि वैन साह कहें यारौ उमराओ जाओ सौ गुनाह राव एती बेर बीच कै गयो। भूषन भनत मुगलान सवै चौथि दीन्ही हिन्द मैं हुकुम साहि नन्द जू को है गयो ॥४५॥ तखत तखत पर तपत प्रताप पुनि नृपति नृपति पर सुनिये अवाज की। दंड सातौ दीप नव खंडन अदंडन पै नगर नगर पर छावनी समाज की । उदधि उदधि पर दावनी खुमान जू की थल थल ऊपर है वानी कबिराज की। नग नग ऊपर निसान झरि जगमगै, पग पग ऊपर दोहाई सिवराज की ॥ ४६ ॥ बारह हजार असवार जोर दलदार ऐसे अफजल खान आयो सुरसाल है। सरंजा खुमान मरदान सिवराज बीर गंजन गनीम आयो गाढ़ो गढ़पाल है ।। भूषन भनत दोऊ दल मिलि गये बीर, २ विठी। मतलब यह है कि समुद्र में फिरने वाली याने भीगी विही हो गये।